क्या बनाने आये थे और क्याबना बैठे कहीं मंदिर बना बैठे तो कहीं मस्जिद बना बैठे हमसे तो जात अछि उन परिंदों की जो कभी मंदिर पे जा बैठे तो कभी मस्जिद पे जा बैठे
दिल की हर बात ज़माने को बता देते है अपने हर राज़ से परदा उठा देते है चाहने वाले हमे चाहे या नाचाहे हम जिसे चाहते है उस पर ‘जान’ लूटा देते है. Meri dost............